
इस्लाम को धर्म का नाम दे दिया गया है लेकिन असल में इस्लाम कोई धर्म नहीं है बल्कि इस्लाम एक सिस्टम है, इस्लाम ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीका है, सलीका है, तहज़ीब है इस्लाम गैर बराबरी को ख़त्म करके बराबरी क़ायम करता है इस्लाम में कोई भी जाति, नस्ल, रंग, दौलत इत्यादि के आधार किसी से छोटा बड़ा नहीं है इस्लाम में सभी बराबर है ।
ज़कात Zakat
इस्लाम बराबरी क़ायम करता है इसके लिए ज़रूरी है कि इंसानो के बीच अमीर गरीब के फर्क को ख़त्म किया जाए इसी लिए इस्लाम में बैतुलमाल का निज़ाम है जहाँ माली हैसियत रखने वाले हर शख्स को अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत पैसा जमा करना होता है ज़कात एक इज्तिमाई निज़ाम है इसमें जमा किये हुए पैसे से इस्लाम के निज़ाम को क़ायम किया जाता है अल्लाह के कानून के हिसाब से रिज़्क़ की तकसीम कमज़ोर हेसियत के लोगो को सबके बराबर लाने के लिए की जाती है जिससे कोई गरीब नहीं रहता, कोई भूखा नहीं रहता I हर साहिबे निसाब यानि माली हैसियत रखने वाले मुस्लिम पर ज़कात देना फ़र्ज़ है ज़कात इस्लाम के पांच बुनियादी फर्ज़ो में से एक फ़र्ज़ है ।
ज़कात की अहमियत
इस्लाम में ज़कात की बहुत ही अहम जगह है ज़कात की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ज़कात देने का तरीका खुद अल्लाह ने क़ुरान में बताया है सूरह तौबा की सूरह नंबर-9 आयात नंबर-60 के हिसाब से दिए गए सिर्फ आठ मदो में ज़कात देने का हुकुम है उलमा अक्सर यह बताते हैं कि ज़कात देने के लिए रमज़ान का महीना ज़्यादा सवाब देने वाला है जबकि बेहतर तो यह है कि अगर किसी ज़कात के हकदार को मदद की ज़रूरत है तो उसके लिए रमज़ान माह का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए क्योकि आप ज़्यादा सवाब के चक्कर मे अगर किसी गरीब की परेशानी या फाकाकशी का सबब बन गए तो आपको सवाब की जगह गुनाह मिल जाएगा इस लिए बेहतर है कि जब भी आपको कोई ज़रूरतमन्द मिले आप फौरन उसकी मदद करें ।
लोग अक्सर ज़कात देने मे आसानी इस्तेमाल करना चाहते है जोकि बिलकुल सही नहीं है ज़कात देने के लिए आपको सही जानकारी होनी बहुत ज़रूरी है ताकि आप सही जगह ज़कात दे सकें ज़कात की रकम तोड़ कर देना या कई लोगो को थोड़ी थोड़ी ज़कात दे देना बेहतर नहीं है मान लीजिए आपको 20000/- रुपये की ज़कात अदा करनी है तो आप 40 लोगो को 500-500 रुपये न देकर कुछ लोगो को इतनी ज़कात की रकम दें ताकि वह उन पैसो से अपने लिए रोजगार का इंतजाम कर सके और अगली बार वह ज़कात का मुस्तहिक न रहे । ज़कात एकमुश्त देनी बेहतर है ताकि ज़कात लेने वाला भी ज़कात देने वाला बन सके ।
इस लेख में मैं आपको क़ुरान में दिए गए 8 मदो के बारे में बताने वाला हूँ ताकि आप अपनी ज़कात सही जगह तक पंहुचा सकें । कुरान मे दिये गए ज़कात के आठ मद इस तरह हैं-
1- फकीर/बहुत गरीब
फकीर उस शख्स को कहा जाता है जिसके पास अपनी बुनियादी जरूरते पूरा करने का इंतजाम न हो जो कोई काम करने लायक न हो या ऐसा शख्स जो बहुत कम कमाता हो व उससे उसकी बुनयादी जरूरते पूरी न हो पा रही हों व इसके लिए मदद मांगे लेकिन जिस्मानी तौर पर तंदरुस्त पर काम न करने वाले पेशेवर मांगने वाले इस मद मे नहीं आते ।
2- मिसकीन
ऐसा शख्स जो मांगता न हो या अपनी ज़रूरत किसी को बताता न हो व मेहनत मजदूरी करने के बाद भी परिवार की बुनियादी जरूरते पूरी न कर पाये तो ऐसा शख्स ज़कात का हकदार है ऐसे लोग चूंकि मांगते नहीं इसलिए इनकी तलाश करके इन्हे ज़कात दी जानी चाहिए बुनियादी जरूरतों का मतलब सिर्फ खाने, कपड़े से नहीं है अगर किसी के पास बच्चे को पढ़ाने के पैसे का इंतजाम न हो तो भी आप अपनी ज़कात उसे दे सकते हैं ।
3- ज़कात जमा करने वाले
ज़कात चुकी इज्तिमाई अमल है व इसके लिए बेतुलमाल का निज़ाम है तो जो शख्स बेतुलमाल के लिए ज़कात जमा करता है वह ज़कात का हकदार है लेकिन कमीशन पर या शर्तो पर ज़कात जमा करना गलत है जैसा कि आजकल आम चलन में है ।
4- गैर मुस्लिम को
अगर कोई गैर मुस्लिम जो ज़कात की वजह से इस्लाम में आ सकता हो आप उसे भी ज़कात दे सकते हैं इसके अलावा शर रोकने के लिए भी ज़कात दी जा सकती है ।
5- गर्दन छुड़ाने के लिए
जेल मे कैद बेकसूर शख्स को छुड़ाने के लिए भी ज़कात का इस्तेमाल किया जा सकता है ।
6- कर्जदार को
अगर किसी शख्स ने कर्ज़ लिया है व वह उस कर्ज़ को चुका न पा रहा हो तो आप उसे कर्ज़ चुकाने के लिए भी ज़कात दे सकते हैं ।
7- फी-सबिलिल्लाह/ अल्लाह के रास्ते में
अल्लाह के रास्ते मे भी आप ज़कात का पैसा दे सकते हैं ।
8- मुसाफिर को
अगर कोई शख्स सफर में है और उसके पास किसी भी वजह से वापस जाने का इंतजाम न हो तो आप उस शख्स को ज़कात दे सकते हैं ।
ज़कात किसे नहीं दे सकते?
सय्यद व पेशेवर मांगने वालों को ज़कात नहीं दी जा सकती ।
लेखक
एडवोकेट आफताब फाजिल
कार्यालय: चेम्बर न०-डी-715, डी-ब्लॉक, सातवीं मंज़िल, कड़कड़डूमा कोर्ट कॉम्प्लेक्स, दिल्ली
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